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अर्थशास्त्र में बाज़ार (market) उन प्रणालियों, संस्थाओं, विधियों, सम्बन्धों और अधोसंरचनाओं का समूह होता है जिनके द्वारा अलग-अलग पक्ष विनिमय (यानि अदला-बदली) कर सकते हैं। मानव इतिहास के सबसे रूढ़ि बाज़ारों में सीधा वस्तु विनिमय होता था, अर्थात दो पक्षों में ऐसा विनिमय जिसमें पहला पक्ष दूसरे से स्वयं चाही कोई वस्तु लेता है और दूसरे पक्ष को उसके द्वारा चाही कोई वस्तु बदले में देकर व्यापार पूर्ण करता है। अधिकांश आधुनिक बाज़ारों में मुद्रा को विनिमय का माध्यम बनाकर एक पक्ष अपने द्वारा बनाई माल या सेवाएँ दूसरे पक्ष को मुद्रा (पैसे) के बदले में देता है। बाज़ार समाज में व्यापार, वितरण और संसाधन आवंटन को सम्भव करते हैं और मुक्त बाज़ार का सुचारु व नियमित रूप से, लेकिन बिना आर्थिक संतुलन में अधिक हस्तक्षेप करे, चलना समाजिक समृद्धि के लिए आवश्यक है। सरकारें या अन्य आधिकारिक संस्थाएँ जब बाज़ारों में सही नीयत से भी हस्तक्षेप करती हैं - जैसे कि मूल्य छत या अधिक कर का डालना - तो अक्सर अनपेक्षित परिणाम-स्वरूप इस से मृतभार घाटा उत्पन्न होता है और अभाव अर्थव्यवस्था, कालाबाज़ारी जैसे भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और निर्धनता जैसी बुराईयों को बढ़ावा मिलता है।[1][2][3]